कैसे सो जाते हैं हम, और जगते कैसे हैं?

 

चैन की नींद सुख का द्वार है। (Photo: National Health Portal/Twitter)

18 अप्रैल 2021 का लेख

यह सवाल मेरे लिए बड़े अचंभे का रहा है कि नींद में हम जब मृतप्राय होते हैं तो जग कैसे जाते हैं। कौन सी शक्ति हमें जगाती है? उसी गाने, टीवी, ट्रेन आदि के शोर से कभी आप जग जाते हैं और कभी आप इनके बीच चैन से सो रहे होते हैं। ऐसा कैसे हो जाता है? मतलब, आप जब भी गोबी खाते हैं तो उसका स्वाद अमूमन एक जैसा ही लगता है। सुबह, शाम, प्लेट में, थाली में, स्टील, प्लास्टिक, पेपर के बर्तन में, पार्टी में, घर में कहीं भी आप खाएँ, रेसेपी एक है तो स्वाद वही रहेगा। आप तब भी कहेंगे कि वह गोबी ही है। फिर ऐसा क्या होता है कि वही गाना कभी आपको सुला देता है, और जगा भी देता है। ट्रेन की आवाज़ से नींद उड़ जाती है और ट्रेन में सो भी जाते हैं?

सब का कंट्रोल दिमाग़ में है। और, यह विकासक्रम है। इवोल्यूशन।

दिमाग़ सबसे जटिल कंप्यूटर है। बिजली से चलता है। चार-पाँच मूल चीज़ें हैं जो जानने की है, दिमाग़ से नींद के कनेक्शन की।

प्रीफ्रॉन्टल कॉर्टेक्स, शायद इसे अग्र मस्तिष्क कहते हैं। इसे आप दिमाग का हेडक्वार्टर भी कह सकते हैं। हमारी भौवें जहाँ मिलती हैं उसके ठीक ऊपर की जगह पर होता है।

दूसरी चीज है, सुप्राकायज़मेटिक केंद्र। मैं सुप्राकायज़मेटिक की हिंदी नहीं बता सकता। यह मस्तिष्क के बीच में होता है। यही वह केंद्र है जो अंदरुनी घड़ी, सर्काडियन रिदम में चाबी भरता है।

तीसरी चीज़ है, पीनियल ग्लैंड। काफ़ी समय से यह ग्रंथि वैज्ञानिकों के लिए रहस्य रहा है। नींद की सूचना के लिए यह एक प्रोटीन जिसे मिलैटोनीन कहते हैं छोड़ता है। मिलैटोनीन एक मैसेंजर है जो हमें सूचना देता है कि नींद लेने का समय हो चुका है।

चौथी चीज़ है, थैलामस। यह भी एक ग्लैंड है। इसे आप दिमाग़ का सेंसरी गेटवे, संवेदना द्वार या संवेदनपाट कह सकते हैं। आप किसी बात को देखकर, सुनकर, सूँघकर, छूकर क्या और किस रूप में समझते हैं, यह बात इसी पर निर्भर करता है। यही थैलामस आपको सपने दिखाता है। जब आप दौड़ रहे होते हैं लेकिन असल में पैर बिस्तर पर ही होता है।

पाँचवी चीज है, एडीनोसीन। यह हमारी बॉडी में बनती रहती है। जिन्होंने बायलॉजी पढ़ी है, उन्होंने एटीपी का नाम भी सुना होगा। इसे कोशिका यानी सेल की ऊर्जा मुद्रा या एनर्जी करेंसी भी कहते हैं। जितनी देर आप जगे रहते हैं एटीपी आपके दिमाग़ में एडीनोसीन बनाता रहता है। इसकी बढ़ती मात्रा नींद का असली कारण है। आपको कितनी नींद आ रही है, यह बात आपके अंदर किसी वक़्त पर कितना एडीनोसीन है, इसी पर निर्भर करता है। जिन्हें नींद नहीं आती, डॉक्टर कई बार उन्हें एडीनोसीन की दवाई देते हैं।

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होता यह है कि जितनी देर आप जगे रहते हैं, ख़ून में मिलैटोनीन की मात्रा बढ़ती जाती है। यह आपके शरीर में एक चीख़ जैसी है कि रात हो गई है, सो जाओ। उस चौकीदार के बिल्कुल उलट जो रात को जागने के लिए आवाज़ें मारता है। मिलैटोनीन आपको सुलाता नहीं है। यह सुप्राकायज़मेटिक केंद्र का संदेशवाहक है और आपसे बस सो जाने को कहता है। सुबह अंदरुनी घड़ी के मुताबिक मिलैटोनीन की मात्रा शरीर में कम हो जाती है। अब यह आपको सोने के लिए नहीं कहता।

लेकिन आप रात भर जगे रहे हों तो आपको सोने की चाह होती है। इसकी वजह एडीनोसीन है। आपको सुलाने का काम भी एडीनोसीन का ही है। जैसे-जैसे एडीनोसीन की मात्रा बढ़ती है, वैसे-वैसे नींद-दबाव भी बढ़ता है। आम तौर पर अँधेरा होने के तीन घंटे के बाद इसकी मात्रा इतनी हो जाती है कि आप कहते हैं कि नींद आ रही है। आप सोना चाहते हैं।

हो सकता है कि आप अभी न सोएँ, लेकिन विकासक्रम ने शरीर को ऐसा बनाया है कि आपके जगे होने पर भी कई हिस्से सुस्त पड़ने लगते हैं। आंशिक नींद। जैसे ही आप सोते हैं एडीनोसीन की मात्रा दिमाग़ में घटने लगती है। जब नींद पूरी होती है तब तक एडीनोसीन लगभग ग़ायब। और, आप जग गए।

यह एक बैरोमीटीर की तरह है जिसमें दिमाग़ आपके जगने को मापता है, और उसके मुताबिक़ नींद की ज़रूरत तय करता है। बहुत ही मज़ेदार गेम चलता रहता है दिमाग़ के भीतर निद्रा और जागृति के बीच। अभी भी जब आप इसे पढ़ रहे हैं। जो नहीं पढ़ रहे, उनके मस्तिष्क में भी। सुबह तक सोने के बाद इस एडीनोसीन की मात्रा इतनी कम हो जाती है कि नींद-दबाव ख़त्म हो जाता है।

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जब आप सो रहे होते हैं तो थैलामस तय करता है कि कौन सी सूचना, संवेदना आपके लिए ज़रूरी है। वह अग्र मस्तिष्क को जाने वाली सूचनाओं को फ़िल्टर करता है। इसीलिए आप गाने सुनते हुए सो जाते हैं। थैलामस एक समय के बाद गाने की ध्वनि को अग्र मस्तिष्क तक नहीं जाने देता।

अक्सर बच्चों के साथ आपने देखा होगा कि अख़बार के पन्ने पलटने से वे जग जाते हैं लेकिन कूकर की सीटी से नहीं। गर्भ में रहने के दौरान उनका मस्तिष्क कूकर की सीटी को सुनता, समझता रहता है। जानता है कि ये इतनी ज़रूरी नहीं कि नींद छोड़ी जाए। अख़बार का पन्ना एक ख़तरा हो सकता है। नई आवाज़ है। वही बच्चे बाद में उस अख़बार से भी नहीं डरते। सोए रहते हैं।

अमूमन बच्चों के नाम जन्म के एक हफ़्ते में रख दिए जाते हैं। लेकिन दिमाग़ के लिए वह भाषा अनजान होती है। थैलामस उसको छानकर बाहर कर देता है। रिपीट होता है। बिना किसी मतलब के। लेकिन जब भाषा समझ आती है और यह पता चलता है कि यह शब्द तो उसी मस्तिष्क के लिए है तो नींद में भी आवाज़ लगाने पर थैलामस दिमाग़ के हेडक्वार्टर को सूचना जाने देता है। आप जाग जाते हैं।

बच्चों से एक उदाहरण और। बड़ों की तुलना में। अगर आप सो रहे हैं और कोई आपको थपकी दे तो आप जग जाते हैं। तक़रीबन हर बार आपकी नींद खुल जाती है। लेकिन जब बच्चों को सुलाना होता है तो हम उन्हें थपकी देकर सुलाते हैं। और, वे सो भी जाते हैं।

क्यों?

वजह वही थैलामस की पहरेदारी। बच्चे जब गर्भ में होते हैं तो सबसे नज़दीक की ध्वनि, आवाज़ जो वे सुनते हैं लगातार वह अपनी माँ के हृदय, दिल की धड़कन की होती है। डॉक्टर का आला लगाकर देखिए वह ठीकठाक तेज होती है। एक रिदम में होती है।

कई महीने बच्चे का मस्तिष्क उसी रिदम, धुन को सुनते हुए सोते हैं, सोए रहते हैं। वह उन्हें एक कम्फ़र्ट, एक प्रकार की सुरक्षा की गारंटी देता है। जन्म के बाद वे गर्भ के प्रोटेक्टिव लेयर के बाहर होते हैं। उन्हें वो रिदम भी सुनाई नहीं देती है।

इसलिए जब हम उन्हें थपकी देते हैं तो उनका मस्तिष्क समझता है कि वह सुरक्षित है। दिमाग़ की तंतुएँ, नर्व्स रिलैक्स होती हैं। और, बच्चे सो जाते हैं। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारा मस्तिष्क उस रिदम को भूल जाता है। दिमाग़ हर उस बात को भूल जाता है जो रिपीट नहीं होता है। उसे वह बात काम की नहीं लगती है। रिदम का छलावा कुछ समय चलता है। फिर, नई आदतें आ जाती हैं। नींद फिर भी आती है। लेकिन नई पृष्ठभूमि में।

थैलामस का एक और मस्त काम है। सपने दिखाना। होता यह है कि जब आप सोते हैं तो दिमाग़ मांसपेशियों को शिथिल होने का इंस्ट्रक्शन देता है। लगभग पैरालाइज़ हो जाने का। आप किसी को सोए हुए व्यक्ति को, बेहतर हो किसी बच्चे को उठाकर देखें। कैसा महसूस होता है? लुंज, पुंज। जबकि मांसपेशियों में वज़न और ताक़त उतनी ही है।

इसी दौरान थैलामस एक जटिल प्रक्रिया में आवाज़, चित्र, गंध, ग़ुस्सा, प्रेम आदि को अग्र मस्तिष्क के स्क्रीन पर फेंकता है। यही सपना है जो हम देखते हैं। यह हमारे लिए बेहद ज़रूरी। इसकी कहानी फिर कभी कहुँगा। फिलहाल इतना ही कि सभी, सभी मतलब सभी स्तनधारी और पक्षी सपने देखते हैं।

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