2019 का लेख
जून की 16 तारीख़ को इस बार फ़ादर्स डे था। ये बड़ा दुविधाप्रद विषय है मेरे लिए। कई सोच गडमड हो जाते हैं ऐसे किसी दिन के कॉन्सेप्ट में। एक ही दिन क्यों? बाक़ी दिन क्या उनका सम्मान नहीं होना चाहिए? बाक़ी दिन क्या उनका अवलोकन नहीं किया जाना चाहिए? बाक़ी दिन क्या उनसे अपनी माँगे नहीं मनवानी चाहिए? बाक़ी दिन क्या उन्हें कष्ट में रखने का हक़ है? या, हम ये मान चुके हैं कि बाक़ी दिन वे कष्ट में ही रहते हैं इसलिए उनके लिए एक दिन फ़ारिग़ कर उन्हें ख़ुश करना चाहिए?
वैसे मेरे डैडी ये पोस्ट नहीं पढ़ रहे होंगे। उन्हें शायद
फ़ादर्स डे भी नहीं मालूम हो। वे फ़ेसबुक क़ौम से नहीं हैं।
दुनिया के सारे ही बच्चे बिना अपनी मर्ज़ी के दुनिया में आते
हैं। लेकिन ज़्यादातर पुरुष अपनी मर्ज़ी से फ़ादर बनते हैं। वे तय करके फ़ादर बनते
हैं। उस दिन के बाद से हर दिन उनका फ़ादर्स डे है।
डिक्शनरी के अर्थ के हिसाब से देखा जाय तो फ़ादर का मतलब उस
शख़्स से है जिसने किसी नयी चीज़, लीक
की शुरुआत की हो। हमारा जीवन एक नयी शुरुआत है। हर जीवन एक नयी शुरुआत, नयी उम्मीद है कि कल आज से बेहतर होगा, बनाया जायेगा। हर फ़ादर के अंदर एक बेहतर भविष्य की कल्पना
होती है। चाहत होती है। अपने लिए नहीं। वो
मान चुका होता है मन ही मन कि वो अतीत का हिस्सा और उसी का प्रतिनिधि है। वो तो उस
नए जीवन के बेहतर भविष्य के लिए उसका सर्जन करता है। किसी को अगर पक्का यक़ीन हो कि
भविष्य बेहतर नहीं, कमतर होने वाला है तो कभी अपने बच्चे को जन्म नहीं
देगा/लेने नहीं देगा। पिता बच्चे को नर्क में नहीं झोंक सकता। बेहतर भविष्य ही
उसका संबल है, पिता बनने की।
तो आज जब आप अपने जनक को जब हैप्पी फ़ादर्स डे बोले, कहें, लिखें, विश करें तो ज़रा सोचें कि क्या आपने उनकी चाहत पूरी की है।
कहीं उनकी उम्मीद को नाउम्मीदी में तो नहीं तब्दील कर दिया है?
इसलिए भी सोचिए कि हो सकता है कि आप अपने पिता के साथ रहते
हों और उनके भीतर उस भविष्य की कल्पना पल-पल टूट रही होगी।
इसलिए भी सोचिए कि आप अपने पिता से दूर रहते हों/हो गए हों
और उस भविष्य की कल्पना को भूल गए हों। और, आपकी
भूल की वज़ह से कोई बूढ़ा या बुढ़ापे की ओर बढ़ता हुआ एक व्यक्ति दुखी हो रहा हो मन ही मन।
इसलिए भी सोचिए अगर किसी के पिता उनसे दूर हो गए हों/ एक
दूसरी दुनिया में हों, और आपको उनका न रहना सालता हो क्योंकि आप अब बस एक
पिता हैं, किसी पिता के बेटे नहीं। उस बेहतर भविष्य की कल्पना के तार
टूट रहे होंगे।
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