नींद किस चिड़िया का नाम है?

 

नींद नियम है, जगते अपवाद है। (Photo: AayushmanBhaarat_Twitter)

14 अप्रैल 2021 का लेख

नींद मेरा पसंदीदा विषय है। सिर्फ़ इसलिए नहीं मुझे सोना बहुत अच्छा लगता है। बल्कि इसलिए कि इसे समझना मुझे बड़ा रोमांचक लगता है। जो लोग मुझे जानते हैं उनमें से कुछ यह भी जानते हैं कि कई साल से मैं नींद को समझने की कोशिश करता रहा हूँ। एक-आध बार लेक्चर देते समय नींद पर मेरी समझ भी मैंने साझा किया था। और, एक बार थोड़ा-बहुत लिखा था। अंग्रेज़ी में। 😊 इस बार हिंदी में कोशिश कर रहा हूँ।

नींद और सोने को लेकर कई तरह की भ्रांतियाँ लोगों के मन में रही हैं। ख़ासतौर पर पेरेंट्स, अभिभावकों के मन में। बच्चों को सोने नहीं देना चाहते। वैसे यह पूरा सच नहीं होगा। असल में वे चाहते हैं कि बच्चे उनकी समझ के मुताबिक़ सोएँ।

उनकी इस ज़िद की जड़ में स्वान निद्रा वाली पाठ है जो उनके बचपन में धुट्टी की तरह उन्हें पिलाई गई थी। नींद पतली होनी चाहिए। कम समय में पूरी होनी चाहिए। और, उठते ही बिल्कुल फ्रेश होना चाहिए।

ये सभी विरोधाभाषी बातें हैं। नींद पतली या हल्की नहीं होनी चाहिए। पूरी नींद हल्कि हो तो हानिकारक है। इतनी कि जानलेवा। नींद महज़ हमारी ज़रूरत नहीं है। नींद जीवन है। जीवन संभालती है।

ऐसे समझिए कि नींद रोज़मर्रा है और जगना आवश्यकतानुसार है। आवश्यकता किसकी? खाना बटोरने की, सुरक्षा निश्चित करने की और वंश बढाने की। जीवन के महत्वपूर्ण काम नींद में होते हैं। याद करिए पिछली बार जब आप बीमार पड़े थे तो डॉक्टरों ने और हितैषियों ने चैन से सोने की सलाह दी थी। नींद वाकई उतनी ज़रूरी है।

क्यों सोते हैं हम?

इसका बिंदुगत कारण शायद अभी नहीं पता। मुझे तो बिल्कुल ही नहीं पता। लेकिन नींद को लेकर अपनी समझ बढ़ाने के चक्कर मे मैंने कुछ शोध-प्रबंध और क़िताबें पढ़ने की कोशिश की। वास्तव में मुझे हैरानी हुई यह जानकर कि स्वैच्छिक वैज्ञानिक से लेकर अमेरिकी सरकार तक नींद को समझने और उसपर रिसर्च करने के लिए करोड़ों डॉलर खर्च करते रहे हैं। इस बात ने मेरे अंदर से नींद में मेरी रुचि को लेकर जो हिचक थी वो दूर कर दी। अगर वैज्ञानिक रिसर्च कर सकते हैं और सरकारें पैसा खर्च कर रही हैं तो इसको लेकर शाई क्यों होना!

हम क्यों सोते हैं, इसको लेकर कई मत हैं। जो बात तय है वह यह कि नींद विकासक्रम, इवोल्यूशन का हिस्सा है। और, धरती पर इसका संबंध सूरज से है। सूर्योदय और सूर्यास्त से है। यह महज़ आँखों से देखने और नहीं दिखाई देने जितना सरल नहीं है। सोना इतना ज़रूरी है कि सभी प्राणवान सोते हैं। सोने का रूप, स्वरूप, विधा अलग-अलग हो सकती है। लेकिन नींद सार्वभौम है।

किस शोध में ऐसा आया था यह तो याद नहीं लेकिन मैथ्यू वाकर, जो कैलिफ़ॉर्निया की बर्कले यूनिवर्सिटी हाँ, जहाँ राहुल गाँधी भाषण दे चुके हैं में पढ़ाते हैं और दुनिया के बड़े स्लीप साइंटिस्ट, नींद वैज्ञानिक हैं, उनका मानना है कि बैक्टीरिया जैसे जीव भी सोते हैं। शायद कोविड-19 वाला सार्स-कोवी-2 कोरानावायरस भी सोता है। इनकी नींद का साइकल भी दूसरे जानवरों और पौधों की नींद की साइकल के जैसा ही सूर्योदय-सूर्यास्त के चक्र से तय होता है।

मैथ्यू वाकर ने कहा है — “We have discovered that the very simplest forms of unicellular organisms that survive for periods exceeding twenty-four hours, such as bacteria, have active and passive phases that correspond to the light-dark cycle of our planet.”

सूर्योदय-सूर्यास्त के इस साइकल में जो हमारा सोने और जगने का साइकल है उसे सर्काडियन रिदम कहते हैं। अंदरुनी घड़ी। यही तय करता है कि हमारा सोने का टाइम क्या है। हमारे सोने की वज़ह भी यही है।

ऐसा नहीं है कि हर व्यक्ति में यह अंदरुनी घड़ी एक समय दिखाती है। भारत में प्रतीकों से समझने की पुरानी परंपरा रही है। जो पढ़ा-समझा है, उसके अनुसार नींद को समझने-समझाने के लिए मेरे ख़्याल से दो पक्षी बड़े उपयुक्त हें उल्लू और भरत, जिसे भारद्वाज पक्षी भी कहते हैं। उल्लू लक्ष्मी से जुड़े होने के अलावा रात में जगने का प्रतीक है। भरत अर्ली राइज़र है।

कुछ लोगों की अंदरुनी घड़ी उल्लू से मिली होती है। भरत पक्षी के मुक़ाबले कुछ घंटे देर से चलती है। कोरोना काल से पहले की भारतीय रेल की गाड़ियों की तरह। उल्लू प्रकृति के लोगों को आप सुबह जगा तो सकते हैं लेकिन वे शुरुआत के कुछ घंटों में काम बड़ी कमज़ोरी के साथ करते हैं। दोपहर के वक़्त यही लोग दक्ष दिखने लगते हैं। लेकिन स्वान निद्रा की हमारी सीख इन्हें सुधारने में हमें लगाकर रखती है।

दुनिया में क़रीब 40 प्रतिशत लोग उल्लू प्रकृति के हैं। लेकिन, आम तौर पर इनकी जगह उँचे ओहदों पर वे पहुँचते हैं जो भरत प्रकृति के होते हैं। राजनेता हों या किसी कंपनी के सीईओ। सो सोया सो खोया, जो जागा सो पाया, ये मुहावरा वैज्ञानिक नज़र में ग़लत है, अप्राकृतिक है लेकिन पाँच में से हर दो व्यक्ति के ख़िलाफ़ बिना जाने हुए पूर्वग्रह के प्रयोग में लाया जाता है। अगली बार सोचिएगा। घर में और दफ़्तर में।

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