सबसे छोटी डरावनी कहानी की कथा

 

फ़ोटोः प्रभाष के दत्ता

नॉक यानी दरवाज़े पर दस्तक अँग्रेज़ी लिटरेचर की सबसे छोटी हॉरर स्टोरी, डरावनी या भूतिया कहानी मानी जाती है। यह सिर्फ़ दो वाक्यों की कहानी है। इसे अमेरिकी लेखक फ्रेडरिक ब्राउन ने लिखी। दूसरे विश्व-युद्ध के तीन साल बाद पहली बार प्रकाशित हुई। अगले ही साल यानी 1949 में यह दोबारा प्रकाशित की गई।

कहानी कुछ इस तरह है – "द लास्ट मैन ऑन अर्थ सैट अलोन इन अ रूम। देअर वाज़ अ नॉक ऑन द डोर..."

अर्थात् "संसार का आख़िरी आदमी एक कमरे में अकेला (अकेलेपन में) बैठा है। दरवाज़े पर एक दस्तक होती है..."

कल्पना करिए कि उस आदनी की जगह आप हैं। भयावह लगता है।

इस कहानी की प्रेरणा एक और अमेरिकी लेखक थॉमस बेली अल्डरिक की कुछ लाइनें हैं – "कल्पना करिए कि धरती के मुखरे से सारे मनुष्यों का ख़ात्मा हो गया है। सिर्फ़ एक आदमी बच गया। कल्पना करिए कि यह आदमी किसी विशाल शहर में है जैसे कि न्यू यॉर्क या फिर लंदन। कल्पना करिए कि अकेलेपन की इस स्थिति में वह तीसरे या चौथे दिन एक घर में बैठा है और उसे डोर-बेल की घंटी सुनाई पड़ती है।"

फ़्रेडरिक ने 1903 में प्रकाशित पॉन्कापॉग पेपर्स में यह लिखा था। प्रथम विश्व युद्ध के 11 साल पहले। चार साल बाद वे चल बसे। मतलब, क़रीब 45 साल बाद फ़्रेडरिक की ये लाइनें कई वैश्विक त्रासदियों – दो विश्वयुद्ध, स्पॅनिश फ़्लू नाम की एक भयंकर महामारी, आर्थिक महामंदी – के बाद ब्राउन की डरावनी कथा की प्रेरणा बनी।

ब्राउन की कहानी की पृष्ठभूमि है कि एलिएन्स, परग्रही ज़ॅन ने धरती पर जीवन समाप्त कर दिया है। कुछ स्पेसिमेन रखे हैं पार्थिव जीवों के म्यूज़ियम, ज़ू के लिए जो वे अपने ग्रह पर, संसार में बनाएँगे।

कमरे में बैठा वो आदमी संयोग से बच गया है। याद करिए, जब आपने दो वाक्यों और तीन बिन्दुओं (जिसे इलेप्सिस कहते हैं) की ये कहानी पढ़ी तो कल्पना में क्या आया था।

उस आदमी की जगह ख़ुद को दो दिन, तीन दिन, एक हफ़्ता रहना क्या भयावह लगा?

अकेलापन, एकाकीपन की ऊब से पैदा होने वाली निस्सारता भी आई होगी, डर के साथ। विचित्र-सी स्थिति है यह कल्पना के लिए।

लेकिन क्या यह ख़्याल आया कि दरवाज़ा किसी महिला ने खटखटया हो?

स्टीरियोटाइप?

लेखक ने तीन बिन्दुओं में डर और संभावना दोनों छोड़ा रखा है। नहीं?

1 comment:

  1. पढ़कर अच्छा लगा तो कमेंट में बता सकते हैं।

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