मित्रता का मंत्र, एक जापानी कहानी

 


जब भी मैं कुछ लिखने को होता हूँ तो मेरी दुविधा होती है: हिंदी या इंग्लिश? ये वाला हिंदी में। वैसे, दिमाग़ में मूल रूप से अँग्रेज़ी में था।

जापान की एक पुरानी सीख है। चढ़ती, बढ़ती उम्र में कहीं से मिली थी। पुराने समय में वहाँ कहते थे कि किसी बेचारे का पेट भरना हो तो उसे मछली दे दो। वो ख़ुश हो जाएगा। संतुष्ट और आनंदित भी। लेकिन वो निर्भर रहेगा

अगर किसी की सच्ची सहायता करना चाहते हो तो उसे मछली पकड़ना सिखा दो। उसे मेहनत करनी होगी। लेकिन वो आत्मनिर्भर बन जाएगा। दूसरों को संतुष्ट और आनंदित कर सकेगा। फिर किसी और को आत्मनिर्भर भी बना सकेगा।
मैंने इसमें एक मानुषी पड़ताल जोड़ दी। अपने लिए। दोस्ती के लिए। सांसारिक सम्बन्ध के लिए।
आप जिसे मछली देते हैं, वो आपके पास आता रहेगा। उसकी ज़रूरत है। संभव है कि कुछ समय बाद वो इसे अपना अधिकार समझने लगे। और, आपको एक प्रकार का क़र्ज़दार। ये चेतावनी है। तय आपको करना है।
दूसरी स्थिति हो सकती है कि जिसे आपने मछली पकड़ना सिखाया, वो फिर कभी आपके पास न आए। उसकी तमाम उम्र की ज़रूरत पूरी हो गई। आपके लिए, नेकी कर, दरिया में डाल।
लेकिन कुछ मछली पकड़ने वाले आपके पास फिर आएँगे, पूरी तरह सीख लेने के बाद भी। ये सच्चे हैं। आप दोस्ती कर सकते हैं। सुकून वाली।
मैं मछली पकड़ने वालों के लौटने के इंतज़ार में रहता हूँ। और, हर सिखाने वाले के पास लौटकर जाता हूँ।

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