कैसे सो जाते हैं हम, और जगते कैसे हैं?

 

चैन की नींद सुख का द्वार है। (Photo: National Health Portal/Twitter)

18 अप्रैल 2021 का लेख

यह सवाल मेरे लिए बड़े अचंभे का रहा है कि नींद में हम जब मृतप्राय होते हैं तो जग कैसे जाते हैं। कौन सी शक्ति हमें जगाती है? उसी गाने, टीवी, ट्रेन आदि के शोर से कभी आप जग जाते हैं और कभी आप इनके बीच चैन से सो रहे होते हैं। ऐसा कैसे हो जाता है? मतलब, आप जब भी गोबी खाते हैं तो उसका स्वाद अमूमन एक जैसा ही लगता है। सुबह, शाम, प्लेट में, थाली में, स्टील, प्लास्टिक, पेपर के बर्तन में, पार्टी में, घर में कहीं भी आप खाएँ, रेसेपी एक है तो स्वाद वही रहेगा। आप तब भी कहेंगे कि वह गोबी ही है। फिर ऐसा क्या होता है कि वही गाना कभी आपको सुला देता है, और जगा भी देता है। ट्रेन की आवाज़ से नींद उड़ जाती है और ट्रेन में सो भी जाते हैं?

सब का कंट्रोल दिमाग़ में है। और, यह विकासक्रम है। इवोल्यूशन।

दिमाग़ सबसे जटिल कंप्यूटर है। बिजली से चलता है। चार-पाँच मूल चीज़ें हैं जो जानने की है, दिमाग़ से नींद के कनेक्शन की।

प्रीफ्रॉन्टल कॉर्टेक्स, शायद इसे अग्र मस्तिष्क कहते हैं। इसे आप दिमाग का हेडक्वार्टर भी कह सकते हैं। हमारी भौवें जहाँ मिलती हैं उसके ठीक ऊपर की जगह पर होता है।

दूसरी चीज है, सुप्राकायज़मेटिक केंद्र। मैं सुप्राकायज़मेटिक की हिंदी नहीं बता सकता। यह मस्तिष्क के बीच में होता है। यही वह केंद्र है जो अंदरुनी घड़ी, सर्काडियन रिदम में चाबी भरता है।

तीसरी चीज़ है, पीनियल ग्लैंड। काफ़ी समय से यह ग्रंथि वैज्ञानिकों के लिए रहस्य रहा है। नींद की सूचना के लिए यह एक प्रोटीन जिसे मिलैटोनीन कहते हैं छोड़ता है। मिलैटोनीन एक मैसेंजर है जो हमें सूचना देता है कि नींद लेने का समय हो चुका है।

चौथी चीज़ है, थैलामस। यह भी एक ग्लैंड है। इसे आप दिमाग़ का सेंसरी गेटवे, संवेदना द्वार या संवेदनपाट कह सकते हैं। आप किसी बात को देखकर, सुनकर, सूँघकर, छूकर क्या और किस रूप में समझते हैं, यह बात इसी पर निर्भर करता है। यही थैलामस आपको सपने दिखाता है। जब आप दौड़ रहे होते हैं लेकिन असल में पैर बिस्तर पर ही होता है।

पाँचवी चीज है, एडीनोसीन। यह हमारी बॉडी में बनती रहती है। जिन्होंने बायलॉजी पढ़ी है, उन्होंने एटीपी का नाम भी सुना होगा। इसे कोशिका यानी सेल की ऊर्जा मुद्रा या एनर्जी करेंसी भी कहते हैं। जितनी देर आप जगे रहते हैं एटीपी आपके दिमाग़ में एडीनोसीन बनाता रहता है। इसकी बढ़ती मात्रा नींद का असली कारण है। आपको कितनी नींद आ रही है, यह बात आपके अंदर किसी वक़्त पर कितना एडीनोसीन है, इसी पर निर्भर करता है। जिन्हें नींद नहीं आती, डॉक्टर कई बार उन्हें एडीनोसीन की दवाई देते हैं।

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होता यह है कि जितनी देर आप जगे रहते हैं, ख़ून में मिलैटोनीन की मात्रा बढ़ती जाती है। यह आपके शरीर में एक चीख़ जैसी है कि रात हो गई है, सो जाओ। उस चौकीदार के बिल्कुल उलट जो रात को जागने के लिए आवाज़ें मारता है। मिलैटोनीन आपको सुलाता नहीं है। यह सुप्राकायज़मेटिक केंद्र का संदेशवाहक है और आपसे बस सो जाने को कहता है। सुबह अंदरुनी घड़ी के मुताबिक मिलैटोनीन की मात्रा शरीर में कम हो जाती है। अब यह आपको सोने के लिए नहीं कहता।

लेकिन आप रात भर जगे रहे हों तो आपको सोने की चाह होती है। इसकी वजह एडीनोसीन है। आपको सुलाने का काम भी एडीनोसीन का ही है। जैसे-जैसे एडीनोसीन की मात्रा बढ़ती है, वैसे-वैसे नींद-दबाव भी बढ़ता है। आम तौर पर अँधेरा होने के तीन घंटे के बाद इसकी मात्रा इतनी हो जाती है कि आप कहते हैं कि नींद आ रही है। आप सोना चाहते हैं।

हो सकता है कि आप अभी न सोएँ, लेकिन विकासक्रम ने शरीर को ऐसा बनाया है कि आपके जगे होने पर भी कई हिस्से सुस्त पड़ने लगते हैं। आंशिक नींद। जैसे ही आप सोते हैं एडीनोसीन की मात्रा दिमाग़ में घटने लगती है। जब नींद पूरी होती है तब तक एडीनोसीन लगभग ग़ायब। और, आप जग गए।

यह एक बैरोमीटीर की तरह है जिसमें दिमाग़ आपके जगने को मापता है, और उसके मुताबिक़ नींद की ज़रूरत तय करता है। बहुत ही मज़ेदार गेम चलता रहता है दिमाग़ के भीतर निद्रा और जागृति के बीच। अभी भी जब आप इसे पढ़ रहे हैं। जो नहीं पढ़ रहे, उनके मस्तिष्क में भी। सुबह तक सोने के बाद इस एडीनोसीन की मात्रा इतनी कम हो जाती है कि नींद-दबाव ख़त्म हो जाता है।

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जब आप सो रहे होते हैं तो थैलामस तय करता है कि कौन सी सूचना, संवेदना आपके लिए ज़रूरी है। वह अग्र मस्तिष्क को जाने वाली सूचनाओं को फ़िल्टर करता है। इसीलिए आप गाने सुनते हुए सो जाते हैं। थैलामस एक समय के बाद गाने की ध्वनि को अग्र मस्तिष्क तक नहीं जाने देता।

अक्सर बच्चों के साथ आपने देखा होगा कि अख़बार के पन्ने पलटने से वे जग जाते हैं लेकिन कूकर की सीटी से नहीं। गर्भ में रहने के दौरान उनका मस्तिष्क कूकर की सीटी को सुनता, समझता रहता है। जानता है कि ये इतनी ज़रूरी नहीं कि नींद छोड़ी जाए। अख़बार का पन्ना एक ख़तरा हो सकता है। नई आवाज़ है। वही बच्चे बाद में उस अख़बार से भी नहीं डरते। सोए रहते हैं।

अमूमन बच्चों के नाम जन्म के एक हफ़्ते में रख दिए जाते हैं। लेकिन दिमाग़ के लिए वह भाषा अनजान होती है। थैलामस उसको छानकर बाहर कर देता है। रिपीट होता है। बिना किसी मतलब के। लेकिन जब भाषा समझ आती है और यह पता चलता है कि यह शब्द तो उसी मस्तिष्क के लिए है तो नींद में भी आवाज़ लगाने पर थैलामस दिमाग़ के हेडक्वार्टर को सूचना जाने देता है। आप जाग जाते हैं।

बच्चों से एक उदाहरण और। बड़ों की तुलना में। अगर आप सो रहे हैं और कोई आपको थपकी दे तो आप जग जाते हैं। तक़रीबन हर बार आपकी नींद खुल जाती है। लेकिन जब बच्चों को सुलाना होता है तो हम उन्हें थपकी देकर सुलाते हैं। और, वे सो भी जाते हैं।

क्यों?

वजह वही थैलामस की पहरेदारी। बच्चे जब गर्भ में होते हैं तो सबसे नज़दीक की ध्वनि, आवाज़ जो वे सुनते हैं लगातार वह अपनी माँ के हृदय, दिल की धड़कन की होती है। डॉक्टर का आला लगाकर देखिए वह ठीकठाक तेज होती है। एक रिदम में होती है।

कई महीने बच्चे का मस्तिष्क उसी रिदम, धुन को सुनते हुए सोते हैं, सोए रहते हैं। वह उन्हें एक कम्फ़र्ट, एक प्रकार की सुरक्षा की गारंटी देता है। जन्म के बाद वे गर्भ के प्रोटेक्टिव लेयर के बाहर होते हैं। उन्हें वो रिदम भी सुनाई नहीं देती है।

इसलिए जब हम उन्हें थपकी देते हैं तो उनका मस्तिष्क समझता है कि वह सुरक्षित है। दिमाग़ की तंतुएँ, नर्व्स रिलैक्स होती हैं। और, बच्चे सो जाते हैं। लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारा मस्तिष्क उस रिदम को भूल जाता है। दिमाग़ हर उस बात को भूल जाता है जो रिपीट नहीं होता है। उसे वह बात काम की नहीं लगती है। रिदम का छलावा कुछ समय चलता है। फिर, नई आदतें आ जाती हैं। नींद फिर भी आती है। लेकिन नई पृष्ठभूमि में।

थैलामस का एक और मस्त काम है। सपने दिखाना। होता यह है कि जब आप सोते हैं तो दिमाग़ मांसपेशियों को शिथिल होने का इंस्ट्रक्शन देता है। लगभग पैरालाइज़ हो जाने का। आप किसी को सोए हुए व्यक्ति को, बेहतर हो किसी बच्चे को उठाकर देखें। कैसा महसूस होता है? लुंज, पुंज। जबकि मांसपेशियों में वज़न और ताक़त उतनी ही है।

इसी दौरान थैलामस एक जटिल प्रक्रिया में आवाज़, चित्र, गंध, ग़ुस्सा, प्रेम आदि को अग्र मस्तिष्क के स्क्रीन पर फेंकता है। यही सपना है जो हम देखते हैं। यह हमारे लिए बेहद ज़रूरी। इसकी कहानी फिर कभी कहुँगा। फिलहाल इतना ही कि सभी, सभी मतलब सभी स्तनधारी और पक्षी सपने देखते हैं।

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नींद पार्ट-2 । नींद किस चिड़िया का नाम है

नींद पार्ट-1 Sleep, the saviour

नींद किस चिड़िया का नाम है?

 

नींद नियम है, जगते अपवाद है। (Photo: AayushmanBhaarat_Twitter)

14 अप्रैल 2021 का लेख

नींद मेरा पसंदीदा विषय है। सिर्फ़ इसलिए नहीं मुझे सोना बहुत अच्छा लगता है। बल्कि इसलिए कि इसे समझना मुझे बड़ा रोमांचक लगता है। जो लोग मुझे जानते हैं उनमें से कुछ यह भी जानते हैं कि कई साल से मैं नींद को समझने की कोशिश करता रहा हूँ। एक-आध बार लेक्चर देते समय नींद पर मेरी समझ भी मैंने साझा किया था। और, एक बार थोड़ा-बहुत लिखा था। अंग्रेज़ी में। 😊 इस बार हिंदी में कोशिश कर रहा हूँ।

नींद और सोने को लेकर कई तरह की भ्रांतियाँ लोगों के मन में रही हैं। ख़ासतौर पर पेरेंट्स, अभिभावकों के मन में। बच्चों को सोने नहीं देना चाहते। वैसे यह पूरा सच नहीं होगा। असल में वे चाहते हैं कि बच्चे उनकी समझ के मुताबिक़ सोएँ।

उनकी इस ज़िद की जड़ में स्वान निद्रा वाली पाठ है जो उनके बचपन में धुट्टी की तरह उन्हें पिलाई गई थी। नींद पतली होनी चाहिए। कम समय में पूरी होनी चाहिए। और, उठते ही बिल्कुल फ्रेश होना चाहिए।

ये सभी विरोधाभाषी बातें हैं। नींद पतली या हल्की नहीं होनी चाहिए। पूरी नींद हल्कि हो तो हानिकारक है। इतनी कि जानलेवा। नींद महज़ हमारी ज़रूरत नहीं है। नींद जीवन है। जीवन संभालती है।

ऐसे समझिए कि नींद रोज़मर्रा है और जगना आवश्यकतानुसार है। आवश्यकता किसकी? खाना बटोरने की, सुरक्षा निश्चित करने की और वंश बढाने की। जीवन के महत्वपूर्ण काम नींद में होते हैं। याद करिए पिछली बार जब आप बीमार पड़े थे तो डॉक्टरों ने और हितैषियों ने चैन से सोने की सलाह दी थी। नींद वाकई उतनी ज़रूरी है।

क्यों सोते हैं हम?

इसका बिंदुगत कारण शायद अभी नहीं पता। मुझे तो बिल्कुल ही नहीं पता। लेकिन नींद को लेकर अपनी समझ बढ़ाने के चक्कर मे मैंने कुछ शोध-प्रबंध और क़िताबें पढ़ने की कोशिश की। वास्तव में मुझे हैरानी हुई यह जानकर कि स्वैच्छिक वैज्ञानिक से लेकर अमेरिकी सरकार तक नींद को समझने और उसपर रिसर्च करने के लिए करोड़ों डॉलर खर्च करते रहे हैं। इस बात ने मेरे अंदर से नींद में मेरी रुचि को लेकर जो हिचक थी वो दूर कर दी। अगर वैज्ञानिक रिसर्च कर सकते हैं और सरकारें पैसा खर्च कर रही हैं तो इसको लेकर शाई क्यों होना!

हम क्यों सोते हैं, इसको लेकर कई मत हैं। जो बात तय है वह यह कि नींद विकासक्रम, इवोल्यूशन का हिस्सा है। और, धरती पर इसका संबंध सूरज से है। सूर्योदय और सूर्यास्त से है। यह महज़ आँखों से देखने और नहीं दिखाई देने जितना सरल नहीं है। सोना इतना ज़रूरी है कि सभी प्राणवान सोते हैं। सोने का रूप, स्वरूप, विधा अलग-अलग हो सकती है। लेकिन नींद सार्वभौम है।

किस शोध में ऐसा आया था यह तो याद नहीं लेकिन मैथ्यू वाकर, जो कैलिफ़ॉर्निया की बर्कले यूनिवर्सिटी हाँ, जहाँ राहुल गाँधी भाषण दे चुके हैं में पढ़ाते हैं और दुनिया के बड़े स्लीप साइंटिस्ट, नींद वैज्ञानिक हैं, उनका मानना है कि बैक्टीरिया जैसे जीव भी सोते हैं। शायद कोविड-19 वाला सार्स-कोवी-2 कोरानावायरस भी सोता है। इनकी नींद का साइकल भी दूसरे जानवरों और पौधों की नींद की साइकल के जैसा ही सूर्योदय-सूर्यास्त के चक्र से तय होता है।

मैथ्यू वाकर ने कहा है — “We have discovered that the very simplest forms of unicellular organisms that survive for periods exceeding twenty-four hours, such as bacteria, have active and passive phases that correspond to the light-dark cycle of our planet.”

सूर्योदय-सूर्यास्त के इस साइकल में जो हमारा सोने और जगने का साइकल है उसे सर्काडियन रिदम कहते हैं। अंदरुनी घड़ी। यही तय करता है कि हमारा सोने का टाइम क्या है। हमारे सोने की वज़ह भी यही है।

ऐसा नहीं है कि हर व्यक्ति में यह अंदरुनी घड़ी एक समय दिखाती है। भारत में प्रतीकों से समझने की पुरानी परंपरा रही है। जो पढ़ा-समझा है, उसके अनुसार नींद को समझने-समझाने के लिए मेरे ख़्याल से दो पक्षी बड़े उपयुक्त हें उल्लू और भरत, जिसे भारद्वाज पक्षी भी कहते हैं। उल्लू लक्ष्मी से जुड़े होने के अलावा रात में जगने का प्रतीक है। भरत अर्ली राइज़र है।

कुछ लोगों की अंदरुनी घड़ी उल्लू से मिली होती है। भरत पक्षी के मुक़ाबले कुछ घंटे देर से चलती है। कोरोना काल से पहले की भारतीय रेल की गाड़ियों की तरह। उल्लू प्रकृति के लोगों को आप सुबह जगा तो सकते हैं लेकिन वे शुरुआत के कुछ घंटों में काम बड़ी कमज़ोरी के साथ करते हैं। दोपहर के वक़्त यही लोग दक्ष दिखने लगते हैं। लेकिन स्वान निद्रा की हमारी सीख इन्हें सुधारने में हमें लगाकर रखती है।

दुनिया में क़रीब 40 प्रतिशत लोग उल्लू प्रकृति के हैं। लेकिन, आम तौर पर इनकी जगह उँचे ओहदों पर वे पहुँचते हैं जो भरत प्रकृति के होते हैं। राजनेता हों या किसी कंपनी के सीईओ। सो सोया सो खोया, जो जागा सो पाया, ये मुहावरा वैज्ञानिक नज़र में ग़लत है, अप्राकृतिक है लेकिन पाँच में से हर दो व्यक्ति के ख़िलाफ़ बिना जाने हुए पूर्वग्रह के प्रयोग में लाया जाता है। अगली बार सोचिएगा। घर में और दफ़्तर में।

कृष्ण कौन थे?

Baby Krishna at Deogarh Temple, Jhansi
Devaki handing over Baby Krishna to Vasudeva | 4th-5th century CE I Gupta Period I Deogarh temple, Jhansi (Photo: National Museum/Twitter)


कृष्ण विष्णु के आठवें अवतार थे। कृष्ण देवकी के आठवीं संतान थे। उनका जन्म सावन समाप्त होने के आठवें दिन हुआ था। 

उनका जन्मदिन एक त्योहार है। इसे दो दिन मनाया जाता है। पहला दिन गोकुल अष्टमी जबकि दूसरा दिन काल अष्टमी कहलाता है। यह 48 घंटों का एक महापर्व है।

लेकिन कृष्ण कौन हैं या कौन थे? ईश्वर के अवतार के रूप में तो उनकी कहानी जग-व्याप्त है। लेकिन ऐतिहासिक सेकुलर ग्रंथों में कृष्ण कहाँ हैं?

बरसों पहले कृष्ण भक्ति काव्य पढ़ते समय यह सवाल मन में कौंधा था। थोड़ी जाँच की तो कुछ बातें मालूम पड़ी। कृष्ण का ज़िक्र ऐतिहासिक ग्रंथों में है। लेकिन जिस तरह कृष्ण शब्द का अर्थ काला, अंधकार और रहस्यमयी है, उसी प्रकार गोप-नीय तरीक़े-से कृष्ण के बारे में इशारा या जानकारी ऋग्वेद में भी मिली।

ऋग्वेद अमूमन प्रामाणिक ऐतिहासिक ग्रंथ माना जाता है। इसके कई सूक्तों और श्लोकों के काल-खंड को लेकर मतभेद है लेकिन इसे भारतीय इतिहास के रिकंस्ट्रक्शन में बहुत अहम माना जाता है। सबसे पुरानी पुस्तक के रूप में इसका स्थान है।

मुझे थोड़ा संदर्भ मालूम था तो गूगल करके वेबसाइट की जाल और जंजाल में भी उतनी कठिनाई नहीं हुई इस बात को ढूँढने में कि ऋग्वेद के किस श्लोक में यह बात लिखी है। चूँकि मैंने ख़ुद इसे अंग्रेज़ी में पढ़ा था तो पहले वही पाठ देता हूँ।

ऋग्वेद के तीसरे मंडल के 55वें सूक्त का पहला श्लोक (आगे बस बात दूँगा, श्लोक विवरण नहीं दूँगा) --

"One who was born before sunrise [उषसः पूर्वा] and later taken to the place of the cows [पदे गोः], is one without a second [त्वमेकम]. He is adorned with bright, attractive and transcendental ornaments. The Gods and the Seers worship him with unlimited faith and devotion." 

यानी, वह जिसका जन्म ब्रह्म बेला से पूर्व हुआ था और जिसे जन्म के बाद गायों अर्थात् यादवों के प्रदेश ले जाया गया था, वह अद्वैत है। वह उज्ज्वल है, आकर्षक है, और पारलौकिक अनुभूति देने वाले आभूषण पहने हुए है। देवता और संत उसकी आराधना असीमित विश्वास और श्रद्धा से करते हैं। 

ए एल बाशम समेत अधिकतर इतिहासकार मानते हैं कि ऋग्वेद महाभारत से पहले रचा गया था। और, महाभारत और कई दूसरे पुराणों मे कृष्ण के जन्म की जो कथा है उसके मुताबिक़ कृष्ण का जन्म मध्य-रात्री के आस-पास हुआ था, मथुरा में हुआ था जो एक मजबूत राजा कंस की राजधानी थी। वह देवकी के सभी संतानों की हत्या करता जा रहा था क्योंकि उसे डर था कि देवकी के संतान के हाथों उसकी हत्या हो सकती है।

संयोग से कृष्ण के जन्म के वक़्त जो आधी रात के पार या पास का समय था संतरी और द्वारपाल सो गए थे। नवजात की रक्षा का अवसर मिला, उसके पिता वसुदेव को। और कृष्ण गोपों के मुखिया नंद के पास सुरक्षित पहुँचा दिए गए। गोप यानी गो-वंशों के मालिक, रखवाले, पालनहार।

ऋग्वेद के पहले मंडल के एक श्लोक (1.164.31) में गोपम यानी गोप या गोपाल का ज़िक्र है। इस श्लोक की अलग-अलग व्याख्या की गई है। एक व्याख्या कृष्ण से जुड़ती है। इसके अनुसार —

“I saw Gopam. He never falls from his position; sometimes he is near, and sometimes far, wandering on various paths. He is a friend, decorated with a variety of clothes. He comes again and again to the material world.”

यानी, मैंने गोप को देखा। वह (आदर्श के) अपने ऊँचे स्थान से कभी नहीं फिसलता है, कभी पास होता है, कभी दूर, कई पथों पर वह विचरता है। वह एक मित्र है, विभिन्न प्रकार के वस्त्रों से सुसज्जित है। वह बार-बार इस भुवन पर आता है (...अवतरित भुवनेश्व अंतः)।

मुझे एक और श्लोक ऋग्वेद का मिला जहाँ कृष्ण का सीधा उल्लेख है। लेकिन वेद-पुराण की मान्यताओं की समुचित जानकारी और समझ नहीं होने के कारण इसका विस्तार और व्याख्या नहीं कर पा रहा हूँ।

यह है ऋग्वेद के पहले मंडल के 116वें सूक्त का 23वाँ श्लोक (मैंने कहा तो था कि श्लोकवार विवरण नहीं दूँगा लेकिन कोई जाँच सके इसलिए देना पड़ा) —

“And with your might, to help the weary Sayu, you made the barren cow yield milk, Nasatyas. To Visvaka, Nasatyas! Son of Krsna, the righteous man who sought your aid and praised you.”

इसमें कृष्ण को एक सच्चा और धार्मिक पुरुष बताया गया है। इसको अगर श्रीमद्भागवत्गीता से जोड़कर देखें तो पिछले दोनों श्लोक के अर्थ सार्थक होते हैं। गीता में कृष्ण कहते हैं कि धर्म की स्थापना के लिए वह बार-बार धरती यानी भुवन पर आते है।

गीता का एक और श्लोक यहाँ मज़ेदार है। अध्याय 15, श्लोक 15।

सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो

मत्त: स्मृतिर् ज्ञानम अपोहनं च |

वेदैश्च सर्वैर अहम एव वेद्यो

वेदान्तकृद् वेद-विद एव चाहम् 

यहाँ कृष्ण स्वयं को सभी प्राणियों के हृदय में रहने वाले कहते हैं। स्वयं से स्मृति, ज्ञान और विस्मृति के निकलने की बात घोषित करते हैं। वह स्वयं को ही वेदों के माध्यम से जानने योग्य बताते हैं। स्वयं को वेदांत के रचयिता कहते हैं। और, वेदों के असली अर्थ को जानने वाला बतातें हैं।

इतिहासकार आमतौर पर उपनिषद् को वेदांत मानते हैं। लेकिन क्या गीता कहने के समय उपनिषद् गढ़े जा चुके थे? क्या कृष्ण भी उसे ही वेदांत कह रहे थे जिसे आज के इतिहासकार वेदांत मान रहे हैं?

संदेह लगता है क्योंकि अगर कृष्ण के वेदांत को उपनिषद् मान लें तो इस श्लोक के बाक़ी हिस्से मिसफ़िट लगने लगते हैं। वेदों के आख़िरी श्लोक जो गीता के समय थे, संभवतः कृष्ण उसे ही वेदांत बता रहे हों। क्या यह संभव नहीं है?

यदि बात यह है तो कृष्ण ही वेदों के रचयिता ठहरते हैं। उन्होंने उसका अंत लिखा है। उसके बाद के वेदांग किसी और ने जोड़े हैं। वैसे भी कहते हैं कि यमुना ने वेद को वेदव्यास यानी कृष्ण द्वैपायन निगमबोध घाट (दिल्ली) पर सौंपा था। यमुना कृष्ण की क्रीड़ास्थली है।

बस एक और बात। कृष्ण और विष्णु संबंध।

ऋग्वेद के पहले मंडल के 22वें सूक्त का 18वाँ श्लोक —

त्रीणि॑ प॒दा वि च॑क्रमे॒ विष्णु॑र्गो॒पा अदा॑भ्यः

अतो॒ धर्मा॑णि धा॒रय॑न्

“Vishnu, the Gopa, who is deceived by none, strode three steps, [and] thereby establishing Dharma that he deemed righteous.”

यानी, विष्णु ही गोप थे। वही गोप जिनका जन्म ब्रह्म बेला के पहले हुआ था और जिन्हें गायों के प्रदेश ले जाया गया था।

 इसे लिखते-लिखते कृष्ण जन्म बेला आ ही गई है। तो, जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ। कृष्ण को। आपको भी।


(इस लेख के अकाट्य होने का दावा नहीं है। बस इतनी-सी कोशिश है बताने की कि कृष्ण कोई मिथकीय कैरेक्टर नहीं थे। कृष्ण के कृष्ण (जानकारी का अंधेरा) में होने के कारण कृष्ण (रहस्यमयी, कालिमा में ग़ुम) हो गए। इस पर भारतीय परंपरा की समझ रखने वालों को शोध करना चाहिए।)

माई भाग कौर को जानते हैं? कितना जानते हैं?

 

Mai Bhag Kaur with her horse in a caricature
माई भाग कौर का कैरिकेचर। तस्वीर सोशल मीडिया से ली गई है। इस कैरिकेचर पर मेरा दावा नहीं है।

भारतीय फ़ौज में महिलाओं की परमानेंट कमीशन और फिर लड़ाकू दस्ते का हिस्सा बनने लड़ाई अभी भारत में एक मुद्दा है। उन्हें यह अधिकार सहज नहीं मिला। अंग्रेज़ी मॉडल की फ़ौज है जिसका 75 साल से भारतीयकरण धीरे-धीरे हो रहा है। इसलिए यह सवाल लाज़िमी है कि क्या आप माई भाग कौर को जानते हैं, अगर हाँ तो कितना जानते हैं।

सत्रहवीं-अठारहवीं सदी में वे थी। गुरु गोबिंद सिंहजी की शिष्या। उनकी अंगरक्षक बनी। और, 1705 में औरंगज़ेब की सेना को खदेरने के बाद माई भागो के नाम से फ़ेमस हुई।

अभी पाँच साल पहले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर बीबीसी ने उन्हें याद किया था। दुनिया की तीन सबसे निर्भीक और बहादुर महिलाओं में शुमार करके। दरअसल बीबीसी रिपोर्ट की गिनती ही माई भागो से शुरू हुई थी। दो अन्य थी, चीन की चिंग शीह, 19वीं सदी और अमेरिका की ज्यनेट्ट रैंकिन।

माई भागो 40 सिख सैनिकों के साथ थी जब गुरु गोबिंद सिंह समेत वे मुग़ल सैनिकों द्वारा घिर गए थे। मुग़ल गुरु का पीछा कर रहे थे। संख्या में कम होने से सिख सैनिकों की हिम्मत जवाब दे रही थी। लड़ाई के मैदान में वे पीछे मुड़ रहे थे, गुरु को छोड़कर। तभी माई भागो सामने आई। सिख सैनिकों को फटकार लगाई और सेनापति की भूमिका अपनाई। सैनिकों में जोश भरा।

उसके बाद तो दुश्मनों की सेना में क़त्लेआम मचा दिया। माई भागो ऐसे लड़ी और सैनिकों का नेतृत्व किया कि मुग़ल पीछे हट गए। गुरु गोबिंद सिंह ने उन सैनिकों को माफ़ कर दिया। हालाँकि उस लड़ाई में वे 40 सैनिक जीवित नहीं बचे। लेकिन माई भागो ने गुरु की रक्षा की।

माई भागो की क्षमता से गुरु इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपना निजी अंगरक्षक नियुक्त किया। यह परंपरा भारत में नई नहीं थी। मौर्य सम्राट के अंगरक्षक महिला सेनानी होती थी।

माई भागो का परिवार सिख गुरुओं का सेवक रहा था। उनके दादा भाई परे शाह गुरु अर्जन देव और उनके चचेरे दादा भाई लंगह गुरु अर्जन देव के बाद गुरु हरगोबिंद की सेवा में भी रहे थे। भाई लंगह तो स्वर्ण मंदिर के निर्माण में गुरु अर्जन देव के साथ थे और उन पाँच सिखों में जो गुरु अर्जन देव के साथ शहादत के लिए लाहौर गए थे।

गुरु अर्जन देव पाँचवें गुरु थे। मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने उन्हें क़ैद किया था। पाँच दिन तक टॉर्चर किया। और, पाँच शिष्यों के साथ वे लाहौर गए। भाई लंगह उनमें से थे। गुरु की शहादत के बाद उनके अंतिम संस्कार का इंतजाम भाई लंगह ने किया था।

बहरहाल, माई भागो ने जिस युद्ध में हिस्सा लिया था, वह खिदराना में हुआ था। मुक्तसर के युद्ध के नाम पर इतिहास में दर्ज है। तारीख़ थी 29 दिसंबर 1705। संयोग की बात है औरंगज़ेब का शासन सवा साल के भीतर ख़त्म हो गया, 3 मार्च 1707 को।

गुरु गोबिंद सिंह ने इन 40 सिख सैनिकों को चाली मुक्ते यानी आज़ाद चालीस कहकर संबोधित किया। खिदराना का नाम इनके ही संबोधन पर मुक्तसर, आज़ादी यानी मुक्ति का तालाब कहा। यह गुरु गोबिंद सिंह का आख़िरी युद्ध था।

माई भागो इसके बाद गुरु के ही साथ रही। उनके साथ वे दमदमा साहिब दिल्ली, आगरा और नांदेड़ गई, जहाँ गुरु गोबिंद सिहं ने 1708 में आख़िरी साँस ली। नांदेड़ के तख़्त हज़ूर साहिब के परिसर में बंगा माई भागो नाम से एक हॉल है। माई भागो के निवास-स्थान के रूप में। गुरु के साथ।

गुरु के बाद माई भागो कर्णाटक के जिनवारा, बिदर के पास चली गई और सिख पंथ से लोगों को अवगत कराती रही। जिनवारा की वह जगह अब तप स्थान माई भागो के रूप में जाना जाता है। एक गुरुद्वारा है।

राणे, उद्धव की राड़

Union minister Narayan Rane and his bete noir Uddhav Thackeray, the Maharashtra chief minister have a history of political rivalry. (Photos: From their official Twitter handles)

नाम में क्या रखा है? लेकिन नारायण और उद्धव दोनों नामों का एक इतिहास है। नारायण विष्णु के कई नामों में से एक है। कृष्ण विष्णु के अवतार माने गए। इस लिहाज से उन्हें नारायण कहा गया। उनके एक मित्र थे, नाम था उद्धव। इनके बारे में सूरदास ने कहा है कि रूप-काया में दोनों समान थे, एक जगह रहते थे, एक-सी बात करते थे लेकिन नारायण यानी कृष्ण और उद्धव स्वभाव में विपरीत-ध्रुवी थे। 

कृष्ण और उनके मित्र उद्धव से तुलना तो कतिपय नहीं है लेकिन जैसा कि महान लोगों की कथाओं के साथ होता है कि वे दृष्टव्य बन जाते हैं, ऐसा ही होता लग रहा है। नारायण राणे और उद्धव ठाकरे भी एक ही राजनीतिक मूल के हैं। शिव सेना दोनों की जड़ है। लेकिन पौराणिक प्रतिस्पर्धा कर उद्धव नारायण कृष्ण तो नहीं बन पाए लेकिन आज के महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरे नारायण राणे से कंपीट कर उनपर भारी पड़ गए।

राणे के बारे में कहते हैं कि वे 1960 के दशक में हरिया-नारिया-गैंग के मेंबर थे। यह गैंग तब के बॉम्बे के चेम्बूर में स्ट्रीट फ़ाइट के लिए जाना जाता था। राणे गैंग से निकलकर 1970 के दशक में शिवसेना का हाथ पकड़ लिया। उस वक़्त बाल ठाकरे बड़ी तेज़ी से उभर रहे थे।

बहुत जल्दी राणे बाल ठाकरे की शिव सेना में शाखा प्रमुख बन गए। यानी एक स्थानीय यूनिट के नेता। और, 1980 के दशक में तो शिव सेना के टिकट पर कॉरपोरेटर भी बन गए। जब 1990 का दशक आया और बीजेपी से जुड़ी पार्टियाँ शासन में आने लगी तो राणे शिव सेना के बड़े नेता बन चुके थे। बाल ठाकरे, राज ठाकरे, मनोहर जोशी जैसे नेताओं के बाद राणे की गिनती होने लगी थी। साल 1999 में तो वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी बने।

हालाँकि जब वे मुख्यमंत्री बने तो बाल ठाकरे का पुत्र-प्रेम उनकी बुज़ुर्ग़ियत पर हावी होने लगा था। राज ठाकरे भी किनारे किए जाने लगे थे। उद्धव ठाकरे जो वर्षों राजनीति से दूर रहने के बाद पार्टी में सक्रिय हो गए थे अमूमन बैकग्राउंड में रहकर काम कर रहे थे। कुछ लोग तो कहते थे कि उद्धव ठाकरे को मराठी भी अच्छे से बोलनी नहीं आती थी।

लेकिन अंग्रेज़ी की कहावत — रक्त जल से गाढ़ा होता है — की राह पर शिव सेना का भविष्य चल पड़ा था। यह कहावत महज़ एक भौतिकी के तथ्य को नहीं बताता है, इसका झन्नाटेदार ज्ञान राणे और राज ठाकरे को हो चुका था। राणे का तो छोड़िए, राज ठाकरे की स्थिति की कल्पना करिए।

राजनीतिक तौर पर एक बड़ा मज़ेदार वाकया मुझसे पुराने पत्रकार सुनाया करते हैं। घटना 1999 की है। महाराष्ट्र में चुनाव था। राणे समेत कई नेताओं की मेहनत से एक लिस्ट बनी कि कौन कहाँ से चुनाव लड़ेगा या लड़ेगी। उद्धव के पास फ़ाइनल लिस्ट पहुँची। उन्हें 15 नाम नहीं जँचे। बदल दिए गए।

नारायण राणे भड़क गए कि ऐसा कैसे। आख़िरकार वे मुख्यमंत्री थे। और, उद्धव बाल ठाकरे के लड़के। लेकिन राणे की शिकायत के बावज़ूद उद्धव के काटे नाम वापस नहीं जोड़े गए। नाम-कटुआ नेताओं ने अलग से पर्चा भरा, निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में। मज़ेदार बात यह रही कि 15 में से 12 जीत गए। राणे चौड़े हो गए। लेकिन उद्धव का वज़न बढ़ता ही चला गया।

साल 2003 में बाल ठाकरे के आशीर्वाद से उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे द्वारा प्रस्तावित होकर शिव सेना प्रमुख बन गए। कहते हैं कि नारायण राणे को यह बात इतनी चुभी कि सीधे बाल ठाकरे से मिले और अपनी नाराज़गी जताई। बाल ठाकरे राणे को प्यार करते होंगे नहीं तो उन्हें इसके बाद भी दो साल तक पार्टी में टिके तो नहीं रहने देते। उनकी पसंद, उनका वचन, पार्टी में उनका शासन और उनके बेटे को चुनौती तो दी ही थी राणे ने।

ख़ैर, राणे की उद्धव से अदावत चलती रही। उद्धव जीतते रहे और नारायण हाशिए पर छिटकते रहे। साल 2005 में, राणे ने उद्धव ठाकरे को चिट्ठी लिखी ये कहने के लिए उनके नेतृत्व वाली शिव सेना बाल ठाकरे की शिव सेना नहीं है। इसमें शिव सैनिकों को प्यार और सम्मान नहीं मिलता है।

उसी चिट्ठी में राणे ने इस्तीफ़ा भी दे दिया। इसका जवाब बाल ठाकरे ने अगले दिन एक ऑडिटोरियम में दिया। राणे को पार्टी से निष्कासित करके। 

मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई है कि राजनीतिक दल के नेता इस्तीफ़ा दे चुके बाग़ियों को पार्टी से निकालते क्यों हैं। पता नहीं, इसके पीछे सिर्फ़ ईगो है या कोई राजनीतिक-क़ानूनी गाँठ।

बाल ठाकरे ने कहा कि राणे ने पार्टी के साथ धोखा किया। वैसे, विरोध तो पुत्र का हुआ था। राणे ने कहा कि पुत्र-मोह हर बात से ऊपर हो चुकी थी। शिव सेना के भीतर राणे के कई उर्फ़ रख दिए गए।

दो उपनाम बड़े चटकारे के साथ लिए जाते थे। नागोबचो पिल्लू और कोम्ड़ी चोर। नाग हुआ साँप, पिल्लू बच्चा, कोम्ड़ी यानी मुर्ग़ी। दरअसल, हरिया-नारिया-गैंग से पहले चेम्बूर में नारायण राणें मुर्ग़ियों की दुकान चलाते और चलवाते थे। इसलिए मंगलवार को जब उनके उद्धव को थप्पड़ मारने वाले बयान पर हंगामा बरपा तो कई शिव सैनिक मुर्ग़ी लेकर प्रदर्शन करते वीडियो में दिखे।

राणे का परिवार भी कम नहीं। उन्होंने बाल ठाकरे के बारे में तो बहुत कुछ नहीं कहा लेकिन उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे को ख़ूब सुनाया है। आदित्य ठाकरे के लिए 'बेबी पेंग्विन' का नाम राणे परिवार से ही फेंका गया बताया जाता है। मंगलवार को भी राणे ने कहा कि सुशांत सिंह राजपूत और दिशा सालियान की मौत से आदित्य ठाकरे का संबंध है। उद्धव ठाकरे को घर कोम्बड़ा कहा। माने, घर-घुसना। 😉

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